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शनिवार, 19 जनवरी 2019

#लोक बाणि (23)

चार दिनोंकि जुन्याइ,फिर अन्ह्यारि रात।
धन छैं उन मैंसों हैंणि,जो कै गई य बात ।

भ्यार भ्यार नौणि छा, भितेर भितेर कौंणि ।
ऐन मौक पै दबै दिनी, यूॅ दगड़ियोंक मौंणि ।

मांगहैंणि जाण ,फिर ठिठौर क्य लुकाण ।
हाथ पारिआर्सी ,तब मुखौड़ क्य देखण ।

भौल अघिलआं,जगी मुच्छ्याव पछिल जां।
तीर्थ ब्रत कतुकै करौ,ऊ कर्मों फल एती पां।

गौं तिराण भौल हौय,मौ तिराण नौक छा।
स्यापें कैं जो दूध पिलां,उ पछिल ध्वक खां।

कामकाजोंम शराब,वां शराबियोंक बख्यड़।
कुकुरक पुछड़ थोई होंन,भ्यार ट्यौड़ै ट्यौड़।

काक भाग क्यछ, क्य हौल य कैल ल्यखौ।
च्यलैकि कुनैइ क्य देखंचा, वक मुनैइ द्यखौ।

लोगौंक कहण कांणिक भाग पै नौ खंचोव।
सही कैनी कभैंअड़पट तौ में नि बन छोव।

मडू छुंगर बुत बलड़ नैं,खाइ पी गल्यढ़ नैं।
म्यर छै म्यर छै अपण नैं,जागि जा दगड़ नैं।

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