उस पर चलना अच्छा है।
बार-बार गिरने से तो,
उठकर संभलनाअच्छा है।
जहां की परवाह नहीं ,
कौन अच्छा बुरा कहता है।
सच्ची बात तो बस यही,
सुपथ पे चलना अच्छा है ।
बुद्ध वही नित शुद्ध वही
शान्ति का आधार रहा है।
मानवता पल्लवित होती
मन भावन संसार रहा है।
यहां ऊंच नहीं कोई नीच,
हर एक मन बराबर है ।
त्रिशरण शील प्रज्ञा का
पथ सबको स्वीकार रहा है।
मुक्ति का बोध हो जाय
जिससे वह पथ अच्छा है ।
मुश्किलों में भी जो साथ दे,
अपना वो मित्र सच्चा है।
रूढ़िवादी बन करके यहां,
नफ़रत बढाना ठीक नहीं ,
अंधभक्ति संलिप्त दूरकर ,
खुद का बदलनाअच्छा है।
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