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गुरुवार, 12 सितंबर 2019

समाजसेविका आनन्दी देवी

समाज में बहुत सारे ऐसे पुरुष एवं महिलाऐं होती हैं जिनकी समाज सेवा को लोग निरन्तर याद करते हैं।अपने आस-पास यदि हम झांकें तो हमें ऐसे बहुत से नाम सुनने को मिलेंगे जिनमें समाज सेवा का जज्बा कूट कूट कर भरा था।जिनकी शिक्षा,दीक्षा,नेतृत्व ,मार्ग दर्शन शोषित समाज के लिए जो कभी वरदान रही,लेकिन उनका इतिहास आज भी अन्धेरे में बिखरा हुआ है।आजआवश्यकता है कि हम समाज के ऐसे समाजसेवी लोगों के इतिहास को खोजें और उन्हें प्रकाश में लायें।जो समाज के लिए प्रेरणा स्रोत तथा आदर्श रहे हों। जिनकी बातों को लोग मानते हों जिनके मार्गदर्शन पर लोगआगे बढते रहे हों। ऐसे लोगों की हमेशा हमको  जरूरत होती है ।उनसे हमारी आस्था जुड़ती है,और हम विकास की राह के लिए प्रेरित होते हैं।समाज में व्याप्त भेदभाव को दूर करने,आपस में भाई-चारा बनाने में कई लोगों ने समाज में महान काम किये।कुछ लोग सामाजिक बुराइयों के खिलाफ़ खड़े हुए कुछ लोग समाज के कमजोर वर्ग के मौलिक अधिकारों के लिये आगे आए उन्होंने  भूमिहीनों के लिए भूमि की लडाई लडी।ऐसे ही समाजसेवियों में एक जाना माना नाम था समाजसेविका आनन्दी देवी ।
       
तल्ला विरलगांव सल्ट स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.हरकराम आर्य जी व हीरा देवी की सात संतानें थी।आनन्दी इनकी दूसरी संतान थी। आनन्दी का जन्म 8 सितम्बर सन्1926 को हुआ।एक कन्या के बाद यह दूसरी कन्या थी।आनन्दी अपने माता-पिता की दूसरी संतान थी।हरकराम जी सामाजिक सरोकार से जुड़े रहते थे।समाज में बहुत सारी कुरीतियां व्याप्त थी।कुरीतियों के कारण समाज विकृत था।शिक्षा का प्रचार प्रसार नहीं था।लड़कियों को स्कूल बहुत कम भेजा जाता था ।छोटी उम्र में ही शादी हो जाती थी।शिल्पकारों की सामाजिक आर्थिक राजनैतिक स्थिति अच्छी नहीं थी ये गुलामों के भी गुलाम थे।आनन्दी को घर पर  सभी आनुली के नाम से पुकारते थे।आनुली की प्राथमिक शिक्षा कफल्टा स्कूल में हुई ।केवल कक्षा तीन तक ही उनकी शिक्षा हुई।दस बारह साल की उम्र में उनका विवाह हो गया।इनका दाम्पत्य जीवन बडा कष्टकारी रहा केवल चार साल तक ही गृहस्थ जीवन निर्वाह कर सकी ।उसके बाद जीवन का संघर्ष प्रारंभ हुआ।उन दिनों कांग्रेस का खूब आन्दोलन हुआ करता था ।इनके पिता स्व.हरकराम आर्य समाज के प्रभाव में आगये ,और वे कांग्रेस के भी सदस्य हो गये।घर पर आर्यसमाजियों का आना जाना रहता था।इस बात का आनंदी के जीवन पर भारी प्रभाव पड़ा वे निर्भीक निडर तो थी ही उनका साहस और द्विगुणित हो गया। सन् 1942में जब इनके पिता जी स्वतंत्रता आन्दोलन में जेल चले गए तो घर की देखभाल वह स्वयं करती।उनके ताऊ कली राम खेती पाती का काम करते थे आनंदी पुरोहित का काम स्वयं करती थी।

आजादी के बाद 1949में आनन्दी देवी ने दायी प्रशिक्षण अल्मोड़ा से किया।कुछ समय काम करने के बाद यह काम छोड़ कर दिल्ली चली गयी ।इन्हें समाज सेवा के प्रति असीम लगाव होने से कारण सामाजिक सरोकारों से जुडती गयी।जयानन्द भारती तथा उनके साथियों के साथ उन्होंने गढवाल में स्कूल खोले शिल्पकार बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया।डोला पालकी आंदोलन को प्रोत्साहित किया ।बाल विवाह ,छुआछूत जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ वे मुखर हुई और कुरीतियों का विरोध किया।आर्यसमाज का प्रचार-प्रसार किया।इन्होंने मजगांव के बचीराम गुसांईराम हरकराम अनेक आर्य समाजी कार्य कर्ताओं के साथ काम करते हुए भिक्यासैन में आर्य समाज मंदिर की स्थापना की।रानीखेत भिक्यासैन अनेक स्थानों पर स्थापित मंदिरों में दी जाने वाली पशु बलि का विरोध किया।आर्यसमाज मंदिर भिक्यासैण की जीवनपर्यंत अध्यक्ष रही।
सन् 1960 में जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात की।बाबू जगजीवन राम जी से शिल्पकारों की सामाजिक स्थिति के बारे में उनके आर्थिक विकास के लिए काम करती थी ।सन् 1966में आपने श्रीमती इंदिरा गाँधी से मुलाकात की।भूमि हीनों की समस्या को निरन्तर संबंधित मंत्रियों व अधिकारियों से निराकरण करने बाबत कहती रही हैं।
  सन्  1974 में सुन्दरखाल में पर्वतीय भूमि हीन शिल्पकार समिति गठित कर आन्दोलन चलाया। गोठ खत्ते टौगिया आदि वनग्राम समस्याओं के बारे में मा0नारायण दत्त तिवारी मा0 हेमवती नन्दन बहुगुणा  मा0 बल्देवसिंह आर्य से समस्याओं के समाधान के लिए मिले।
   


9 मई सन् 1980 को कफल्टा कांड ने इन्हें बहुत आहत किया तब आनंदी देवी दिल्ली में थी।आनन्दी देवी ने हिम्मत नहीं हारी।जघन्य हत्याकांड के लिए न्यायिक जांच की कार्यवाही की पहल की उच्च न्यायालय से केस को उच्चतम न्यायालय में अपील कर न्याय के लिए संघर्ष किया। भिक्यासैण से दिल्ली जाते वक्त रामनगर श्री मथुरा प्रसाद टम्टा एसओ साहब के निवास में रुकी  भिक्यासैन मेें  गिर जाने के कारण पैर में चोट आने के कारण चलने-फिरने में असुविधा हो रही थी ।दिल्ली जा कर किसी विवाह समारोह में सम्मिलित होना था ,3 मई 1999 की घटना है कि विवाह समारोह मेें सामिल होनेे के लिए जब वे सड़क पार कर रही थी तो रास्ता पार करते समय दुर्घटना घट गई आपने मेंअन्तिम सांस ली।आपके जाने बहुत दुख परिवार को हुआ ।आपकी प्रेरणा व आशीर्वाद हमारे साथ सदा रहे ।आपको नमन करते हैं।

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