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शनिवार, 17 अप्रैल 2021

फिर आ जाना***स

श्रेय-प्रेय झंझावातों से मुक्त, 
चिर विश्राम में हो गई सुसुप्त ।
जागोगी ! धरती में पद रखना,
तुम स्वप्निल रथ से उतरना।

प्रिये आकर ज्योति जला जाना, 
तुम फिर सृजन पर्व मना जाना।

कर्मभूमि है शक्ति पर निर्भर,
चलना होता है सम्भलकर।
तन दुर्बल होकर थक जाता,
जीवन पथ में रुक जाता है।

विश्राम करे फिर कुछ पल तन।
तभी कर सकते हैं शक्तिअर्जन। 

तुम यादों का भंडारण कर गये, 
यूँ हमसे हंसते हमसे बिछुड़ गये।
हमको तो पल पल होगा स्मरण ,
बड़ा मुश्किल है करना विस्मरण।

तुम आकर ज्योति जला जाना, 
तुम फिर सृजन पर्व मना जाना ।



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