जयभीम से मेरा कदम सम्भल जाता है।
मेरा जय भीम है उन पाठकों को अपने,
जिनके हौसलों से भय निकल जाता है।
लिखते रहें अभी विमर्श है बिखरा हुआ।
वंचितों का इतिहास भी है बिसरा हुआ।
कुछ हौसलाअफजाई हो इस संघर्ष में,
यहां चारों तरफ मनुवाद है पसरा हुआ।
कंटक भरे पथ आज सारे छोड़ दो तुम ।
चलो उस राह जहां हित खोज लो तुम।
हल-चल तो होगी ही यहां इस समन्दर में,
हौंसले के साथ एक पत्थर फैंक दो तुम।
"""""""""स्नेही """"""
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