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सोमवार, 17 मई 2021

एक बला*** स

झांक कर अपने झरोखों से,
  लोग कह रहे बाहर शोर है।
    सुनसान पथ पर एक छाया,
      लगता है जैसे कोई चोर है।
मूंह बन्द किए दूर खड़े लोग,
  उस छाया को देख डर रहे हैं।
    फूल रही सांसें बढ़ रही धड़कन,
     खड़े खड़े लोग यूँ ही मर रहें हैं। 
कौन जाने छाया ये क्या बला है।
  काल का यह चक्र नहीं टला है।
    सावधान रहिए व घर पर रहिए, 
      इसी में ही तो हम सबका भला है।

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