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गुरुवार, 6 मई 2021

माँ

          
हमको देती है जो अपनी जुबां,
  अद्भुत स्नेहमयी होती  है 'मां'।
    ममता त्याग की वह प्रतिमूर्ति, 
      देती जीवन में हमको स्फूर्ति।
जब कभी भूख से संतप्त होते,
  गोद मां के बैठआंचल भिगोते।
    गिर पड़े तो मां आकर उठाती,
      हमें राहों पर चलना सिखाती।
नींद न आए  लोरियां सुनाती,
  रात को चन्दा मामा दिखाती।
    स्वयं भूखी प्यासी रह जाती,
      बच्चों को भूखा नहीं सुलाती।
प्रथम शिक्षिका मां संस्कार जगाए।
  जीवन में हमको व्यवहार सिखाए ।
    कोटि-कोटि कृतज्ञ रहैं हम मां के ।
      नतमस्तक नमन चरणों में मां के।
""""""""""स्नेही """""""
 
 

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