यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 16 सितंबर 2021

बच्चे व खेल

नींद तभी आती बच्चों को ,
जब   वे  खेला  करते   हैं।
माँ से आँख मिचौली करके,
घर   से  निकला  करते  है।

स्कूल  हमेशा  ही जीवन  का,
सृजन का उत्तम साधन होता।
मिलते  रोज  जहाँ   सहपाठी, 
गुरु का नित्यअभिवादन होता।

समय  से  अन्जान हमारे बच्चे,
चुप- चाप  घरों   में   बैठे   हैं।
शिक्षा  की  इस  व्यवस्था  पर,
वक्त   ने  ही  कान  उमैठे   हैं। 

उठते  हुए  सवालों  का  हल,
आओ    मिलकर  खोजें  हम।
जीवन के  इस   परिवर्तन  में,
सम्यकता  की   सोचें    हम।

बच्चे राष्ट्र कीअनमोल धरोहर,
तन-मन धन सब इन पर वारें ।
अखण्ड   राष्ट्र  भारत के हित,
हम  शिक्षा  की  नीति  सुधारें।




  

कोई टिप्पणी नहीं:

कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...