कहां तुम्हारी वह बंशी हैं।
आज बजा दो बंशी अपनी।
बाहर खड़ा एक विध्वंसी है।
बड़ी कथाऐं सुनी तुम्हारी,
प्रेम, दया, और शक्ति की।
रक्षा करने को आते थे तुम,
धरती पर अपनी भक्ति की।
कोरोना का तांडव मचा है,
घर घर आज यहाॅ धरती में।
क्या कोई ताकत नही अब,
रह गयी तुम्हारी शक्ति में।
अबला की मर्यादा लुटती,
आज यहां हर चौराहों पर।
नाम तुम्हारा लेकर लूटते -
वो विध्वंसक हर राहों पर।
आकर नृत्य दिखाओ अपना,
बंशी की धुन सुनाओ तुम।
करके पाखंड का नाश अब,
भारत अखंड बनाओ तुम ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें