चारोंओर धुंध ही धुंध।
आस-पास कोई नजर नहीं आ रहा था।
इक्का-दुक्का गुजरने वाला भी मूंह ढ़का हुआ जा रहा था ,
कोई किसी को नहीं पहचान पा रहा था।
रेलवे स्टेशन की तरफ भी-
धुंध का कुछ ऐसा ही हाल था।
इसीलिए गाड़ियों के आने में विलम्ब का सवाल था।
मुसाफिरों के लिए सरकारी अलाव जल रहा था।
अलाव के पास एक नव जवान बीड़ी फूक रहा था।
खांसते हुए मुड़कर पीछे दीवार पर थूक रहा था।
जहां लिखा था "स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत"
मैं कुछ सवाल करने की चेष्टा कर ही रहा था,
कि वह तपाक से बोल पड़ा सरकार !
राशन कार्ड,वोटर कार्ड,पैन कार्ड,
सारे दस्तावेज हैं मेरे पास।
क्या पहचान के लिए कुछ और चाहिए खास।
मैंने कहा भाई कहां है आपका निवास ?
उसने कहा मैं एक पथिक हूँ निवास रहित हूँ।
घर नहीं है तो क्या?
मैं भारत का एक नागरिक हूँ।
फुटपाथियों का मालिक हूँ।
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