कतुक भौल अपण मुलुक,कतु मिठि छा दुदबोलि।
हमुकैं बिगाड़ि गई जो ,डाव लागि जो उनरि झगुलि।
के अपणि मति बिगड़ि के हमुकैं भ्यारक बिगै गय।
भौल बखतक इन्तजारम,येति नन तिन भूकै रह गय।
एतिक फरफराटम हम लै एतिक शहरी है गय।
एतिक रंगचंगाटम हमअपण बोलि भूलि गय।
शहरोंक भीड़ भड़ाकम हम लै इफनें डोई गय।
कोशिश करमों यांअपणि दुद बोलि सिख हैणि।
क्य खबर क्यहौं कब लौटण पडौल पहाड हैंणि।
आजकल लेखण लैरैं,अपण दुद बोलिक गीत।
खोजण लैरें ढोल दमाऊ हुड़ुक बिणाइ संगीत।
सायद के छा इनुमें आजि लै,गौं रिश्तोंक मिठास।
छोड़ि बै ऐगय जनोंकैं उनरि लैरैं हमुकैं निशास।
अपणि बोलि भाषा अपणि पछ्याण,हम बनोंल।
शहरोंक कैं उत्तराखंडी नयी गीत संगीत सिखोंल।
हमरि संस्कृति हमरि पछ्याण,रैगे अपण उ पहाड़।
जाकें लिबेर चौड़ चाकव हैरैंछी ऊं मारमें वां डाड़।
दद भूलिक आदर नि निभै सक सब बगै दी गाड़।
लम्ब नाक लगै बेर लै नि उठ सक आजतक ठाड़।
झ्वड़ चांचरि न्योलि चैत्वाल हुड़ुकैकि थापम छाजी।
हुड़ुकैकि घमघमाटम वां हुड़ुकी पछिल छैं आजि।
हिटो हिकौव लगाओ उनू परि येति अब बखत ऐगो।
इसिक छटकी कब तक रहला सब एक दगड़ि लागो।
जरा सोचों हम कतुक ठुल,और ऊ कतुक छुअट छैं।
जोअघिलअघिल हिटमैं,उनरै पछिल हमर रुअट छैं।
हमों हबै ऊं छ् वट किलै?उनुकें अपण जस बनाओ ।
वघतक पारि हाथ पकड़ि उनुकैं लै उज्याव दिखाओ।
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