प्रसन्नचित व्यक्तित्व के धनी बौद्ध जी व्यसनों से दूर रहते थे और साथियों को भी व्यसनों से दूर रहने को प्रेरित करते थे।ध्यान व्यायाम व सुबह-शाम घूमना उनकी दिनचर्या थी। हास्य व्यंग्य उनकी चर्चाओं में होता ही था।खूब मनोविनोदी बौद्ध जी उत्तराखंड के शिल्पकार समाज के लिए आर्य समाज आन्दोलन उचित नहीं मानते थे।उनका मानना था कि इससे शिल्पकार समाज और अधिक मानसिक गुलाम हुआ है।उत्तराखंड शिल्पकार समाज के लिए आज बाबा साहेब डाक्टर भीमराव अम्बेेेडकर जी द्वारा प्रतिपादित बौद्ध धम्म उचित है।वे बामसेफ के रामनगर संयोजक भी रहे ।कई कैडर शिविर संचालित किए ।
आपका जन्म 3 मार्च 1940 कोटाबाग में हुआ।यहीं शिक्षा प्राप्त की 14 जनवरी 2016लगभग पचहत्तर वर्ष की उम्र में उनका परिनिर्वाण हो गया ।आज बौद्ध जी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन वे अपनी शिक्षाओं के लिए हमेशा हमारे हृदय में रहेंगे।उनके परिनिर्वाण दिवस पर उन्हें शत् शत् नमन।🌹🌹🌹
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