यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

वृद्धाश्रम

लोग कहते हैं कि सच सच बोला करो,
मगर झूठ से ही पलते हैं अक्सर लोग।
बूढ़े हो जाते हैं माँ बाप अगर आज तो,
वृद्धाश्रम पहुँचाआते उन्हें अक्सर लोग।

परिवार बने हैं मजबूत रिश्तों सेअक्सर।
आज परिवार में ही रिश्ते गये हैं बिखर।
काम काजी ज़िन्दगी रिश्ते मशीनों से है,
माँ बाप निर्भर हो गयेअब वृद्धाश्रम पर।

एकओर मांजी जो छियानब्बे साल की हैं,
खेलती हैं गांव में ,पोते पोतियों के साथ।
पढ़ लिख कर जिसने घर से शहर देखा, 
वृद्धाआश्रमों में हैं सुखी रोटियों के साथ।

दुखी वो लोग जोअनाथ हैं फुटपाथों पर,
जीवन वसर कर रहे हैं वो हाथ फैलाकर।
ऐसे असहाय लोगों के लिए है वृद्धाश्रम,
लेकिन रसूखदार पहले मांगते हैं आकर।


कोई टिप्पणी नहीं:

कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...