यहांअंधेरा दूर तलक पसरा है अभी।
भोर का तारा निकल रहाअभीअभी।
झरोखों से झांक कर देखो मटकों में,
छुआछूत कितना भरा हुआ है अभी।
जंग ए आजादी लड़ी मिलकर सबने,
कुछआजादऔर कुछ गुलाम हैंअभी।
मिट्टी से यह मटका बनाया कुम्हार ने,
मटका सछूत है कुम्हारअछूत है अभी।
बड़ी हँसी आती है उनके ज्ञान पर हमें,
जो कहें मुँह से पैदा हुए थे इन्सान कभी।
अपने मूंह मिट्ठू मत बना करो अब यहां,
जरा दूसरों की भी तो सुन लीजिए कभी।
अंधेरों में ढूढ़ते हैं भोजन उल्लू की तरह,
वो कहते हैं दिन मेंअंधेरा पसरा हैअभी।
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