बरसने की तैयारी में हैं घटाऐं, जरा देखो।
गरजने वाले बरसते नहीं हैं,ये कहावत है,
आसमां से हवा हो गए बादल, जरा देखो।
पांच सालों में लहलहाती फसल वोटों की,
कौन काटेगा इस बार ये फसल, जरा देखो।
गरज रहे हैं बादलों की तरह यहां नेतागण,
अब की बार कौन हाथ मारेगा जरा देखो।
सड़कों पर खेतीहर मजदूर किसान बैठे हैं,
महंगाई से त्रस्त हैं बेरोजगार , जरा देखो।
कई दलबदलू मौकापरस्त नेता हैं ताक में,
किधर लपकेंगे नेता जी इसबार जरा देखो।
प्रजातंत्र के नाम पे जनता गुमराह होती है,
प्रजा को कौन प्रसाद चटाता है जरा देखो।
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