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शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018

भौनी दा(27)

दगड़ू भौनी दा,जनुहैं भवान सिंह कौंनी।
आज कल अब ऊं बल दिल्ली हौन रौनी ।
हम ननछना बटि स्कूल,एक दगड़ै  गय।
एकै स्कूलम, हम एकै दर्जम दगड़ै रय।
हमुलि गुल्ली डंडा,घुसघुसि दगड़ै खेलि।
बटपन लुुुुकण पणज्यू मार दगड़ै झेलि।
हम एक बटी दस तक स्कूल दगड़ पढ़।
जो साल पास हय और वी साल विछड़।
अपण दद दगै भौनी दा तलि हैंणि नै गय, 
इज बौज्युक लाडिल हम घर पनै रै गय।
साल द्वी साल तक चिठि पतर लिखनै रय।
बखतक दगड़, फिरि हमलै सब भूलि गय।
भौनीदा कैं वेति दिल्लीक हवा रास ऐगे ।
घरपन मेरि मास्टरीक बस एक तलाश रैगे। 
कब ब्या हौय ? यूॅ कब नन तिन हय ?
बचपना दिन अपण हम  सब भूलि गय।
घरपन सैंणिक कचकचाट  सुणनैं रय।
राती ब्याव हम स्वीणोंक जाव बुणनें रैगय ।
येति दिन रात हम दौड़नै रिश्त बड़नैं गय।
य उमरकि किताबक हर पन्न पलटनै रय।
लोगोंल बतायआज भौनी दा घर ऐ रैंई।
अपण दगै ननतिन पहाड़ घुमुहणि ल्य रैंई।
मैं ब्याव एक झप्पाक  मिलहणि क्य गोय।
चहा  पीनैं गपशप  मारनैं झित वैं रै गोय।
उमर बिति हम पहाड़ हैंणि के नि कर सक।
अपण ठाठ-बाट मारनैं रै गय कोरि फसक।







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