सरकार चलाओ ,हल्ला बोल कर ।
सरकार गिराओ ,हल्ला बोल कर।
उनका भी हल्ला,इनका भी हल्ला ।
आपस में झल्ला, जनता को बहला ।
सब के सब हैं,एक थैली के चट्टे बट्टे।
यूॅ ही चला रहे हैं ,राजनीति के सट्टे ।
ये कभी इधर हैं, तो कभी उधर हैं।
पता नहीं है कि कब कौन किधर हैं ।
गिरगिट की तरह ,खूब रंग बदले हैं ।
ये धरम जाति की खूब चाल चले हैं ।
इनको बस कुर्सी की हवस होती है।
सरकार गिराओ ,हल्ला बोल कर।
उनका भी हल्ला,इनका भी हल्ला ।
आपस में झल्ला, जनता को बहला ।
सब के सब हैं,एक थैली के चट्टे बट्टे।
यूॅ ही चला रहे हैं ,राजनीति के सट्टे ।
ये कभी इधर हैं, तो कभी उधर हैं।
पता नहीं है कि कब कौन किधर हैं ।
गिरगिट की तरह ,खूब रंग बदले हैं ।
ये धरम जाति की खूब चाल चले हैं ।
इनको बस कुर्सी की हवस होती है।
बेचारी जनता तो जीवन भर रोती है ।
क्या सोच सके हैं क्यों बंचित जन है ?
नेता के पास कितना संचित धन है ?
अब उठ जा तू भी ये हल्ला बोल ।
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