- क्यों तुम मौन हो? तुम क्योंअसमर्थ हो?
बाहर भूखी भीड़ है बेबस लाचार खड़ी ,
बेजान पत्थरों पर उनकी आस्था जड़ी।
मकडजाल शब्दों के तथ्य हैं तर्कों से परे।
संवेदन हीन भीड़ में सबके सब हैं बहरे।
मुश्किल है समझाना परअसम्भव भी नहीं।
आस्तिक से नास्तिक हो जाना हैअच्छा कहीं।
कहता है जाग जाओ,भीड़ के पीछे न जाओ।
शिक्षित बनो तर्क करो जीवन में संघर्ष करो।
नास्तिक जो तर्क करता बुद्धि से स्वीकारता है।
स्वयं दीप बन कर नित्य जीवन को सवांरता है।
सबको यहां न्याय मिले और न कोई बंचित रहे।
वह नास्तिक जो बोल रहा उम्र भर जीवित रहे।
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