यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 3 अगस्त 2022

बदलता परिवेश

घर-परिवार गांव करूं बात अपने देश की।
अभिलाषा सभी की है अच्छे परिवेश की।
प्रेम हो सबके दिलों में और हो सहिष्णुता।
स्वतंत्र,खुशहाल रहें हो जीवन में संपूर्णता।

पर वक्त के साथ  सारा परिवेश बदला है।
खान-पान औरआचार- व्यवहार बदला है। 
यहां गांव  बदला खेत खलिहान  बदला है।
बार त्यौहार शादी-ब्याह श्मशान बदला है।

रिश्ते कमजोर रिश्तों में चापलूसी ज्यादा है।
रिश्वतखोर अमन चैन में भाग रहा प्यादा है।
त्यौहार में नफरत है शादी महज व्यापार है।
मां बाप आश्रमों में हैं कागजों में परिवार है।

राजनीति उनकी चली जो हैं बड़े बाहुबली।
इसीलिए पार्टियों में खूब रहती है खलबली।
धर्म जाति नाम पर लड़ते चुनाव लोग अब।
पांच साल में नेतागण  लूटना चाहते हैं सब।

बलिदानों से स्वतन्त्रता मिली हम कृतज्ञ हैं।
सामाजिक परिवेश से हम क्यों अनभिज्ञहैं।
नफ़रती हर दीवार गिरे आज ये उद्देश्य हो।
प्रबुद्ध भारत देश में ये मानवीय परिवेश हो।

कोई टिप्पणी नहीं:

कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...